यूँ भी कभी हुआ हें कि ,
जब तू सर्द की सुबह नर्म चादर से उठे तो
कानों मे आवाज़ मेरे अल्फाजो की ही गूंजे !
जब में गिर जाऊँ तो साँस तेरी अटक जाऐँ
रो भी दूँ तो अश्को से दर्द तेरे टपकता दिखे !
जब तू सर्द की सुबह नर्म चादर से उठे तो
कानों मे आवाज़ मेरे अल्फाजो की ही गूंजे !
जब में गिर जाऊँ तो साँस तेरी अटक जाऐँ
रो भी दूँ तो अश्को से दर्द तेरे टपकता दिखे !
यूँ भी कभी हुआ हें कि ,
जब तू उस खुदा से ख़ुद के लिये कोई दुआ माँगे तो उस दुआ में कोई सज़दा मेरे नाम का भी लगे
तू वहाँ मीलों दूर और में यहाँ सदियों दूर फ़िर भी तेरे नये आशियां के नशेमन में ये नाचीज़ ही दिखे !
जब तू उस खुदा से ख़ुद के लिये कोई दुआ माँगे तो उस दुआ में कोई सज़दा मेरे नाम का भी लगे
तू वहाँ मीलों दूर और में यहाँ सदियों दूर फ़िर भी तेरे नये आशियां के नशेमन में ये नाचीज़ ही दिखे !
यूँ भी कभी हुआ हॆ कि ,
जब तू खामोश भरी रातों में तन्हा चाँद को निहारे तो सूरत भी उस तन्हा भरे समां में मेरी ही झलके!
जब एक पल को भी दूर तुझसे जो में हो जाऊँ तो तू बखूबी मेरे लिये भी रांझे सा हीर के लिये तरसे !
अब तो तू बता ही दें , यूँ भी कभी हुआ हें कि ?
जब तू खामोश भरी रातों में तन्हा चाँद को निहारे तो सूरत भी उस तन्हा भरे समां में मेरी ही झलके!
जब एक पल को भी दूर तुझसे जो में हो जाऊँ तो तू बखूबी मेरे लिये भी रांझे सा हीर के लिये तरसे !
अब तो तू बता ही दें , यूँ भी कभी हुआ हें कि ?