Saturday 25 March 2017

गोरखधंधा

                                                              गोरखधंधा


एक ओर जहां सोशल मीडिया ने दूर दराज बैठे लोगों को पास ला दिया है, अभिव्यक्ति का एक बेहतरीन विकल्प दिया है, तो वही कुछ लोगों ने सोशल मीडिया को ही अपना गोरखधंधा बना दिया है। और आम जन चाहते और ना चाहते हुए इस गोरखधंधे का हिस्सा बन रहे हंै।
 आज सोशल मीडिया पर बहुत सी एसी पोस्ट की बाढ़ आई हुई है जिसने सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों की भावनाओं को इस कदर प्रभावी किया है कि लोग इन धंधाखोरों के वश में बढ़ी आसानी से आ जाते है। लेकिन क्या कभी लोगांे के मन मस्तिष्क में ये प्रश्न नहीं उठता कि क्या वास्तव में किसी चित्र के नीचे मां लिखने से ही यह साबित होता है कि आप सच्चे मात्रभक्त है या हिंदू लिखने से ही आप सच्चे हिंदू। गौरतलब है कि फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्र्गान एक मुद्दा बना दिया जाता है और वही हम सोशल मीडिया की पोस्ट पर भारत माता की जय लिख कर अपना देशप्रेम दर्शाते है।
क्या वास्तव में एसा कभी हुआ है कि एक मैसेज को 11 लोगो को भेजने से आपका प्यार आपको मिल गया हो या फिर आपकी कोई इच्छा पूरी हो गयी हो लेकिन फिर भी एसा होता है। एक दोस्त यदि एसे किसी मैसेज से पीड़ित हुआ हो तो उसे भी तनिक देर नहीं लगती इस महामारी को फैलाने में।
आज शायद लोगों का देशभक्ति, ईश्वर भक्ति, दया भावना, प्रेमभावनाएं इतनी कमजोर है कि इन्हें कोई भी खरीद ले और आप उसे जय भारत माता, जय शिव, जय माता दी, आमीन जैसे शव्दों के माध्यम से प्रकट करें।
कोई भी एसा क्षेत्र यदि आय का साधन बनता है तो इसमें कोई बुराई नहीं हैं, लेकिन जब उसी क्षेत्र के धंधे में छल, कपट, धोखा अपनी जगह बना लेते है तो यह गोरखधंधा बन जाता है। और एसा ही इन पोस्ट के माध्यम से लोगांे की भावनाओं के साथ खेला जाता हैै जिसमें देश, धर्म, जाति, प्रेम भावनाएं मुख्य हथियार बनते है। भावनाओं के साथ खेलने का गोरखधंधा बहुत पुराना है। जहां सिर पर तिलक लगा कर, पीले कपड़े पहन कर, बहुत से ढ़ोंगी बाबाओं द्वारा धार्मिक भावनाओं से खेला जाता है। आज विज्ञान और तकनीकि के युग में प्लेटफार्म बदल गया है और धंधा वही है। और आज जब सोशल मीडिया पर यह काम किया जाता है तब मात्र भगवान का नाम ही नहीं, धर्म, जाति और यहां तक कि देश के नाम को भी एक हथियार बना लिया है। इसके साथ ही बहुत सी एसी दयनीय परिस्थिति की पोस्ट को डाला जाता है कि  एक तो आप उस घटना को सच मान लेते है और कमेंट, लाइक जैसी प्रतिक्रियाएं देने पर विवश हो जाते है।
यह बात सोचने योग्य है कि धंधाखोरों ने अपने को विकसित कर लिया है लेकिन क्या हम लोगों की भावनाएं इतनी कमजोर है कि शिकार बनाना इतना आसान  है। आज समय बदल चुका है। हमें जरूरत है इन सभी चीजों के लिए जागरूक रखने की कि कहीं आपकी भावनाओं के साथ तो नहीं खेला जा रहा और साथ यह भी देखे कि सूचनाएं गलत तो नहीं है।

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